जैसा तुम सोचती हो
वैसी नहीं है यह दुनिया
न ही तुम वैसी हो
जैसा तुम्हें देखना चाहती है यह
बहुत ग़ुस्सा आता है इसे
जब तुम खिल-खिलाकर हंसती हो
देखती हो ख़्वाब
जब तुम खुलकर सांस लेती हो तो
इसका दम घुटने लगता है
जब तुम सिर उठाने की बात करती हो तो
सांप लोटने लगते हैं
इसके सीने पर
तुम्हारा सवाल करना
बग़ावत लगता है इसे |
जैसा तुम सोचती हो
जैसा तुम सोचती हो
वैसी नहीं है यह दुनिया
न ही तुम वैसी हो
जैसा तुम्हें देखना चाहती है यह
बहुत ग़ुस्सा आता है इसे
जब तुम खिल-खिलाकर हंसती हो
देखती हो ख़्वाब
जब तुम खुलकर सांस लेती हो तो
इसका दम घुटने लगता है
जब तुम सिर उठाने की बात करती हो तो
सांप लोटने लगते हैं
इसके सीने पर
तुम्हारा सवाल करना
बग़ावत लगता है इसे |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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