ज़िन्दगी बुनती है बेशुमार ख़्वाब मगर चह किसकी सुनती है दौड़ती जाती है उधेड़ते हुए सांसों की सिलाई अपने ही लिबास की और छोड़ जाती है यादों के कुछ रंग वक़्त की धूप में धीरे- धीरे उड़ जाने को | – इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सांसों की सिलाई
ज़िन्दगी बुनती है
बेशुमार ख़्वाब
मगर चह किसकी सुनती है
दौड़ती जाती है
उधेड़ते हुए
सांसों की सिलाई
अपने ही लिबास की
और छोड़ जाती है
यादों के कुछ रंग
वक़्त की धूप में
धीरे- धीरे उड़ जाने को |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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