मैं तुम्हें जितना भी जान पाया हूं
और जानना चाहता हूं
तुम्हारा कहा हुआ
आधा सच और झूठ
पूरा-पूरा
तुम जब बोलती हो तो
तुम्हारे शब्दों के बीच का खालीपन
तुम्हारी धीमी होती आवाज़
बहुत कुछ बयान कर देती है
जो तुम चाहकर भी कह नहीं पाती
कितनी उलझी हुई लगती हो तुम
सुलझी हुई दिखने की फ़िराक़ में |
कितनी उलझी हुई लगती हो
मैं तुम्हें जितना भी जान पाया हूं
और जानना चाहता हूं
तुम्हारा कहा हुआ
आधा सच और झूठ
पूरा-पूरा
तुम जब बोलती हो तो
तुम्हारे शब्दों के बीच का खालीपन
तुम्हारी धीमी होती आवाज़
बहुत कुछ बयान कर देती है
जो तुम चाहकर भी कह नहीं पाती
कितनी उलझी हुई लगती हो तुम
सुलझी हुई दिखने की फ़िराक़ में |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की नज़्म
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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