जाते-जाते जब हुई उससे आँखें चार पतझर भी लगने लगा मुझको सावन यार कभी फूल बन दिन हँसें कभी बने ये खार ये कब होते एक से जाने सब संसार एक सहारा क्या मिला मुझको तेरा मीत इसीलिए तो मिल रही हर पल मुझको जीत सारा सिस्टम सड़ रहा रिसने लगा मवाद किसको जाकर हम करें अपनी ये फरियाद सूरज की किरणें हँसी पंछी करें धमाल फागुन नाचा झूम कर उड़ने लगा गुलाल गोरी बैठी नाव में साजन बैठा पास गोरी को विश्वास है आज बुझेगी प्यास पास अगर है हौसला कठिन नहीं फिर काम सुबहा के घर झाँक तू कैसे होगी शाम – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जाते-जाते जब हुई
जाते-जाते जब हुई उससे आँखें चार
पतझर भी लगने लगा मुझको सावन यार
कभी फूल बन दिन हँसें कभी बने ये खार
ये कब होते एक से जाने सब संसार
एक सहारा क्या मिला मुझको तेरा मीत
इसीलिए तो मिल रही हर पल मुझको जीत
सारा सिस्टम सड़ रहा रिसने लगा मवाद
किसको जाकर हम करें अपनी ये फरियाद
सूरज की किरणें हँसी पंछी करें धमाल
फागुन नाचा झूम कर उड़ने लगा गुलाल
गोरी बैठी नाव में साजन बैठा पास
गोरी को विश्वास है आज बुझेगी प्यास
पास अगर है हौसला कठिन नहीं फिर काम
सुबहा के घर झाँक तू कैसे होगी शाम
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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