खूब लगायें पेड़ हम हो पेड़ो की छाँव हरियाली हँसने लगे हँसे हमारे गाँव आन मान से सब रहें रखें सभी का मान आँच न आये देश पर हों इस पे कुर्बान क़दम नहीं पीछे हटें गायें जन-मन गान लड़े आखरी साँस तक हो जायें बलिदान कुछ तो अच्छे काम कर अच्छा बन इन्सान मात-पिता का नाम हो तेरा हो सम्मान कहे किनारों से नदी बादल क्यों नाराज गरजा तो वो जोर से बरसा न क्यों आज जब से आया घर सनम ! नयन करें हुड़दंग लपक झपक जियरा करे, जैसे पी हो भंग छिछलेपन को छोड़कर गहराई में डूब बादल बरसेगा सनम ! हरी उगेगी दूब – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
खूब लगायें पेड़
खूब लगायें पेड़ हम हो पेड़ो की छाँव
हरियाली हँसने लगे हँसे हमारे गाँव
आन मान से सब रहें रखें सभी का मान
आँच न आये देश पर हों इस पे कुर्बान
क़दम नहीं पीछे हटें गायें जन-मन गान
लड़े आखरी साँस तक हो जायें बलिदान
कुछ तो अच्छे काम कर अच्छा बन इन्सान
मात-पिता का नाम हो तेरा हो सम्मान
कहे किनारों से नदी बादल क्यों नाराज
गरजा तो वो जोर से बरसा न क्यों आज
जब से आया घर सनम ! नयन करें हुड़दंग
लपक झपक जियरा करे, जैसे पी हो भंग
छिछलेपन को छोड़कर गहराई में डूब
बादल बरसेगा सनम ! हरी उगेगी दूब
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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