मोबाइल ने गाँव में जब से किया प्रवेश देखो सारे गाँव का बदल गया परिवेश अपनापन हँसता नहीं झूठे सब अनुबन्ध सम्बन्धों के दवार पर ये कैसी दुरगन्ध तन सुन्दरता देखकर यूँ मत पीछे भाग अन्तस् में भी झाँक कुछ जाग मुसाफिर जाग अब जनता के सामने नहीं बजाता बीन जब से वो नेता हुआ कुर्सी पर आसीन ज़िन्दा रहना है अगर सच को सच मत बोल चुप रहना तू सीख ले कभी न ऊँचा बोल मैं रहती हूँ चुप सनम ! तू करता है तर्क तेरे मेरे बीच में एक यही है फर्क कहाँ गये वो लोग सब ढूंढो उनको यार मिला सदा जिनसे हमें अपनापन औं, प्यार – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मोबाइल ने गाँव में
मोबाइल ने गाँव में जब से किया प्रवेश
देखो सारे गाँव का बदल गया परिवेश
अपनापन हँसता नहीं झूठे सब अनुबन्ध
सम्बन्धों के दवार पर ये कैसी दुरगन्ध
तन सुन्दरता देखकर यूँ मत पीछे भाग
अन्तस् में भी झाँक कुछ जाग मुसाफिर जाग
अब जनता के सामने नहीं बजाता बीन
जब से वो नेता हुआ कुर्सी पर आसीन
ज़िन्दा रहना है अगर सच को सच मत बोल
चुप रहना तू सीख ले कभी न ऊँचा बोल
मैं रहती हूँ चुप सनम ! तू करता है तर्क
तेरे मेरे बीच में एक यही है फर्क
कहाँ गये वो लोग सब ढूंढो उनको यार
मिला सदा जिनसे हमें अपनापन औं, प्यार
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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