सम्बन्धों का इस तरह तोड़ न भाई द्वार समय कठिन हो जायेगा जीवन होगा भार अपने अन्तस से कभी मिटा सका ना भेद यही भेद तो कर रहा सम्बन्धों में छेद सम्बन्धों के द्वार पर छिड़क प्रीत का रंग तेरे घर के द्वार पर बाजेगा फिर चंग बदला बदला सा लगा कुछ उसका व्यवहार लगता है उसको मिली अपनों से फटकार कुछ तो ऐसा रच नया सपन उड़ें आकाश मानवता के द्वार जो भरें नया उल्लास तोड़ न ऐसे मीत तू मधुर मधुर सम्बन्ध ये जीवन के गीत हैं ये जीवन के छन्द सम्बन्धों के द्वार पर कोयल कूकी आज आगे बढ़ तू भी सनम बजा नेह का साज – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सम्बन्धों का इस तरह
सम्बन्धों का इस तरह तोड़ न भाई द्वार
समय कठिन हो जायेगा जीवन होगा भार
अपने अन्तस से कभी मिटा सका ना भेद
यही भेद तो कर रहा सम्बन्धों में छेद
सम्बन्धों के द्वार पर छिड़क प्रीत का रंग
तेरे घर के द्वार पर बाजेगा फिर चंग
बदला बदला सा लगा कुछ उसका व्यवहार
लगता है उसको मिली अपनों से फटकार
कुछ तो ऐसा रच नया सपन उड़ें आकाश
मानवता के द्वार जो भरें नया उल्लास
तोड़ न ऐसे मीत तू मधुर मधुर सम्बन्ध
ये जीवन के गीत हैं ये जीवन के छन्द
सम्बन्धों के द्वार पर कोयल कूकी आज
आगे बढ़ तू भी सनम बजा नेह का साज
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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